Thursday, November 29, 2007

नागार्जुन


नागार्जुन

परस पाकर तुम्‍हारा ही प्राण
पिघलकर जल बन गया होगा कठिन पाषाण
छू गया तुमसे कि झरने लग पडे शेफालिका के फूल
बांस था कि बबूल ?

1 comment:

विजयशंकर चतुर्वेदी said...

बाबा की तस्वीर दिखाकर तुमने भला किया
फिर से उनकी यादों औ' कविताओं को जिया.