कमलेश्वर
'' राजनीतिक पार्टियों ने धारदार लेखकों को खुद उन्हीं की मूल धारा से काटकर अपनी हिंदुत्ववादी या अतिक्रांतिवादी नहरें निकालकर उन्हें लेखकों के विचार और रचना के अजस्त्र स्रोत को सुखा देने और असंगत बना देने की दुरभिसंधि की है। उन धारदार लेखकों के लेखन और विचारों में पैदा हुए इस अन्तर्विरोध ने व्यक्तित्वों और सोच को सीमित तथा छोटा किया है और इसी से रचना का अवमूल्यन हुआ है।'' - कमलेश्वर, किताबधर प्रकाशित अपनी 10 प्रतिनिधि कहानियों की किताब की भूमिका में ।
'' राजनीतिक पार्टियों ने धारदार लेखकों को खुद उन्हीं की मूल धारा से काटकर अपनी हिंदुत्ववादी या अतिक्रांतिवादी नहरें निकालकर उन्हें लेखकों के विचार और रचना के अजस्त्र स्रोत को सुखा देने और असंगत बना देने की दुरभिसंधि की है। उन धारदार लेखकों के लेखन और विचारों में पैदा हुए इस अन्तर्विरोध ने व्यक्तित्वों और सोच को सीमित तथा छोटा किया है और इसी से रचना का अवमूल्यन हुआ है।'' - कमलेश्वर, किताबधर प्रकाशित अपनी 10 प्रतिनिधि कहानियों की किताब की भूमिका में ।
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