Tuesday, June 28, 2011
Friday, June 24, 2011
फॉरवर्ड प्रेस : आइए, इसके नये कलेवर का स्वागत करें
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Wednesday, May 25, 2011
Premkumar mani , Manikant thakur, Nand kishor naval
दैनिक जागरण के संवाददाता राघवेंद्र दुबे ने कहा कि आज राजनीति और मीडिया दोनो कॉरपोरेट हो गयी है। अखबारों और किताबों में शब्दों की ताकत कम हुई है और विज्ञापनो में मजबूत। उन्होंने कहा कि वर्चुअल स्पेस, फेसबुक और ब्लॉग्स से इन बड़े घरानों वाले अखबारों को चुनौतियां मिल रहीं हैं।
पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि बिहार में मौजूदा शासन में न तो कोई उद्योग लगा, न आपराधिक घटनाओं में कमी आयी, फिर भी यहां का मीडिया किस आधार पर सुशासन के गीत गा रहा है? दो-तीन अखबारों की पेज संख्या सात-आठ पर छपी रिपोर्टों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि अगर इन रिपोर्ट्स को मैं पहले पन्ने पर छापने लगूं, तो दस दिन के अंदर यहां जंगल राज नजर आने लगेगा। 1974 में जेपी के समय जो मीडिया यहां था, वो अब यहां नहीं रहा। बिहार की कंबाइंड रीडरशिप (85 लाख) का हवाला देते हुए दिलीप मंडल ने कहा कि यहां के दो अखबारों को अगर कोई खरीद ले, तो वह यहां के मीडिया पर वर्चस्व कायम कर सकता है। यहां के मीडिया पर सवर्णों का पूरा अधिकार रहा है। मीडिया में जो न्यायप्रिय सवर्ण हैं, हम उनसे आशा कर सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि कॉरपोरेट के पत्रकारों को कोसना जायज नहीं है, वे तो एक बड़ी मशीन के सिर्फ नट-बोल्ट हैं, जड़ तो कहीं और है।
जनसता से जुड़े वरिष्ठ पत्रकार गंगा प्रसाद ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज अखबार में समाचार तो है, पर खबर नहीं है। एक समय था, जब मीडिया हाउस इंदिरा के खिलाफ लिखते थे, लेकिन आज नीतीश से डरते हैं। आज हम पत्रकारिता नहीं बल्कि इसकी दुकानें चला रहे हैं, जिसमें तीन हजार, पांच हजार में पत्रकार खट रहे हैं।
वरिष्ठ पत्रकार सुकांत ने कहा कि आपलोग जिस समस्या की बात कर रहे हैं, वह पटना और दिल्ली की समस्या है। अखबारों के क्षेत्रीय संस्करणों में आज भी साहस के साथ सच की पत्रकारिता की जा रही है, लेकिन उनकी आवाज को आप सुनना नहीं चाहते और मीडिया विमर्श में सिर्फ राजधानियों को ही महत्व देते हैं।
कथाकार, राजनीतिज्ञ प्रेम कुमार मणि ने कहा कि सुशासन के साथ-साथ बिहार में पांखंड का राज भी चल रहा है। उन्होंने हिंदुस्तान से जुड़े व सांसद एनके सिंह के नीतीश के साथ रिश्ते का उदाहरण देते हुए कहा की बिहार का मीडिया आज नीतीश का मीडिया है, जो वेल मैनेज्ड है और वो सरकार की चापलूसी में लगा है। हमारी विडंबना है कि आज समाचार क्या होंगे, ये पहले राजनीति के संपादक तय करते है फिर अखबार के। सच्चाई लिख रहे कुछ लोगों पर एंटी नीतीश का आरोप लगाकर कुचला जा रहा हैं।
कार्यक्रम के अंत में प्रो नवल किशोर चौधरी ने कहा कि जो 15 सालों में डेमोक्रेटिक फ्युरलिज्म था, वो आज आगे वढ़ा है। एक ओर जहां 5.2 फीसदी ग्रोथ रेट को 11.6 फीसदी दिखाया जा रहा है, वहीं इंदिरा आवास मात्र 35 फीसदी, नरेगा 1.22 फीसदी समाजिक उद्देश्य को पूरा कर पाये हैं।
Development is where out of 5 years… नवल किशोर चौधरी ने कहा कि जातिवादिता अपने चरम पर है। अपराधिक घटनाओं की quantity में जहा बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं quality में कमी आयी है। कानून-व्यवस्था में कुछ सुधार हुआ है। you have anything do you like… हमें बाजार बना दिया गया है। आज हमें सोशलिस्ट से कैपिटलिस्ट बनाया जा रहा है। ऐसे में मीडिया की भूमिका पर सवाल उठता है।
मंच संचालन सांस्कृतिक पत्रकार और रंगकर्मी अनीश अंकुर ने किया।
Monday, May 23, 2011
Saturday, February 26, 2011
Sunday, March 07, 2010
मुजीब हुसेन
Wednesday, January 06, 2010
Wednesday, November 25, 2009
Monday, October 12, 2009
सुधीर चंद्र, प्रमोद रंजन व अपूर्वानंद
राजीव रंजन गिरी
बाएं से- आदित्य निगम, अभय कुमार दुबे व अजय नावरिया
सेमिनार हॉल में राकेश कुमार सिंह, अभय कुमार दुबे, सुधीर चंद्र व आदित्य निगम
विनीत व प्रमोद रंजन
Tuesday, March 24, 2009
Sunday, March 08, 2009
Pash
Sunday, March 01, 2009
Thursday, October 16, 2008
रचानाएं आमंत्रित
Dear Mr. Ranjan,
I saw your Blog "छाया: Photogrphs of Hindi writers" while searching for pics of some of the Hindi writers. It's a great effort from your side. I would like to congratulate you for maintaining the site and trying your best to update the pictures of all the contributors of Hindi literature. It's pretty sad to see that still we find very less online information related to Hindi literature. Thank you once again.We are about to release the first issue of a Hindi magazine called "Argala" ( www.argala.org ). It will be online for first few months and later from January 2009 onwards we will go for print issue. I would be very glad if you could contribute something from your side. I have seen 20 young writers on your Blog if you could forward their email id or if you could forward this message to them, I would be very thankful to you because we are a bit lacking in contributions from young people and I am very much in favour of contributions from young people specially who are less than 30 years old or don't have any publication history. All other contributions are by invitation only. We welcome all kind of contribution related to Hindi literature such as, Kavita, Kahani, Lekh, Sameeksha or anything which suggest how to promote Hindi or Hindi literature. There is one column which is dedicated to Translated articles from other languages to Hindi.In the first issue of Argala some of the highlights are, Interview of India's biggest award in literature ie Sahitya Academy Award winner Amarkant, Interview of Dr. Soumyabrata Chowdhury, a famous theater director and writer, article of Late Acharya Ramchandra Shukla and a few contributions from some of the most famous personalities in this field - Dr. Varyam Singh, Dr. Ganga Prasad Vimal, Dr. Anand Kumar and Dr. Devendra Chowbey.Hoping to hear from you soon.
With regards,Ravindra Pushker\Member, Editorial BoardArgala-editor@argala.org
Friday, August 01, 2008
Friday, July 11, 2008
भूपेंद्र नाथ कौशिक "फ़िक्र"
जन्म १९२५ नाहनप्रयाण- २००७ जबलपुर
इनका नाम है.. श्री भूपेंद्र नाथ कौशिक "फ़िक्र"
और थोडी बहुत जानकारी के लिए.. आप इस ब्लॉग को खोल सकते हैं..
http://bkaushikfikr.blogspot.com/