Wednesday, May 25, 2011

Premkumar mani , Manikant thakur, Nand kishor naval

निवार को को पटना के माध्यमिक शिक्षक संघ भवन में जेएनयू, दिल्ली ऑल इंडिया बैकवर्ड स्टुडेंट फोरम और अभियान, पटना के बैनर तले एक सेमिनार का आयोजन किया गया। बिहार के राजनीतिक संदर्भ में पत्रकारिता पर बात हुई। सबसे पहले अपनी बात रखते हुए मणिकांत ठाकुर ने कहा कि आज मीडिया के सामने दो बड़ी चुनौतीयां हैं। पहला ये सरकारी तंत्र का पब्लिक रिलेशन हाउस बनता जा रहा है, दूसरा आज का मीडिया हाउस पत्रकारों और संवदाताओं की मर्जी से नहीं बल्कि उनके मलिकों की मर्जी से चल रहा है। सरकार आज गिरोह बनती जा रही है, और वो सांस्‍थानिक तरीके भ्रष्‍टाचार को वैधता दे रही है और हैरानी की बात ये है कि मीडिया इन तमाम मसलों पर मौन है। पांच-सात सालों में जो विज्ञापनों की बाढ़ आयी है, इसने मीडिया का अपहरण कर लिया है।
दैनिक जागरण के संवाददाता राघवेंद्र दुबे ने कहा कि आज राजनीति और मीडिया दोनो कॉरपोरेट हो गयी है। अखबारों और किताबों में शब्दों की ताकत कम हुई है और विज्ञापनो में मजबूत। उन्‍होंने कहा कि वर्चुअल स्पेस, फेसबुक और ब्‍लॉग्‍स से इन बड़े घरानों वाले अखबारों को चुनौतियां मिल रहीं हैं।
पत्रकार दिलीप मंडल ने कहा कि बिहार में मौजूदा शासन में न तो कोई उद्योग लगा, न आपराधिक घटनाओं में कमी आयी, फिर भी यहां का मीडिया किस आधार पर सुशासन के गीत गा रहा है? दो-तीन अखबारों की पेज संख्‍या सात-आठ पर छपी रिपोर्टों का उदाहरण देते हुए उन्‍होंने कहा कि अगर इन रिपोर्ट्स को मैं पहले पन्‍ने पर छापने लगूं, तो दस दिन के अंदर यहां जंगल राज नजर आने लगेगा। 1974 में जेपी के समय जो मीडिया यहां था, वो अब यहां नहीं रहा। बिहार की कंबाइंड रीडरशिप (85 लाख) का हवाला देते हुए दिलीप मंडल ने कहा कि यहां के दो अखबारों को अगर कोई खरीद ले, तो वह यहां के मीडिया पर वर्चस्व कायम कर सकता है। यहां के मीडिया पर सवर्णों का पूरा अधिकार रहा है। मीडिया में जो न्यायप्रिय सवर्ण हैं, हम उनसे आशा कर सकते हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि कॉरपोरेट के पत्रकारों को कोसना जायज नहीं है, वे तो एक बड़ी मशीन के सिर्फ नट-बोल्ट हैं, जड़ तो कहीं और है।
जनसता से जुड़े वरिष्‍ठ पत्रकार गंगा प्रसाद ने अपनी बात रखते हुए कहा कि आज अखबार में समाचार तो है, पर खबर नहीं है। एक समय था, जब मीडिया हाउस इंदिरा के खिलाफ लिखते थे, लेकिन आज नीतीश से डरते हैं। आज हम पत्रकारिता नहीं बल्कि इसकी दुकानें चला रहे हैं, जिसमें तीन हजार, पांच हजार में पत्रकार खट रहे हैं।
वरिष्‍ठ पत्रकार सुकांत ने कहा कि आपलोग जिस समस्‍या की बात कर रहे हैं, वह पटना और दिल्‍ली की समस्‍या है। अखबारों के क्षेत्रीय संस्‍करणों में आज भी साहस के साथ सच की पत्रकारिता की जा रही है, लेकिन उनकी आवाज को आप सुनना नहीं चाहते और मीडिया विमर्श में सिर्फ राजधानियों को ही महत्‍व देते हैं।
कथाकार, राजनीतिज्ञ प्रेम कुमार मणि ने कहा कि सुशासन के साथ-साथ बिहार में पांखंड का राज भी चल रहा है। उन्‍होंने हिंदुस्‍तान से जुड़े व सांसद एनके सिंह के नीतीश के साथ रिश्ते का उदाहरण देते हुए कहा की बिहार का मीडिया आज नीतीश का मीडिया है, जो वेल मैनेज्‍ड है और वो सरकार की चापलूसी में लगा है। हमारी विडंबना है कि आज समाचार क्या होंगे, ये पहले राजनीति के संपादक तय करते है फिर अखबार के। सच्चाई लिख रहे कुछ लोगों पर एंटी नीतीश का आरोप लगाकर कुचला जा रहा हैं।
कार्यक्रम के अंत में प्रो नवल किशोर चौधरी ने कहा कि जो 15 सालों में डेमोक्रेटिक फ्युरलिज्‍म था, वो आज आगे वढ़ा है। एक ओर जहां 5.2 फीसदी ग्रोथ रेट को 11.6 फीसदी दिखाया जा रहा है, वहीं इंदिरा आवास मात्र 35 फीसदी, नरेगा 1.22 फीसदी समाजिक उद्देश्य को पूरा कर पाये हैं।
Development is where out of 5 years… नवल किशोर चौधरी ने कहा कि जातिवादिता अपने चरम पर है। अपराधिक घटनाओं की quantity में जहा बढ़ोत्तरी हुई है, वहीं quality में कमी आयी है। कानून-व्‍यवस्‍था में कुछ सुधार हुआ है। you have anything do you like… हमें बाजार बना दिया गया है। आज हमें सोशलिस्‍ट से कैपिटलिस्‍ट बनाया जा रहा है। ऐसे में मीडिया की भूमिका पर सवाल उठता है।
मंच संचालन सांस्‍कृतिक पत्रकार और रंगकर्मी अनीश अंकुर ने किया।

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