Sunday, December 09, 2007

मुक्तिबोध

मुक्तिबोध


'' भक्ति-आन्दोलन में ब्राह्मणों का प्रभाव जम जाने पर वर्णाश्रम धर्म की पुनर्विजय की घोषणा में कोई देर नहीं थी। ये घोषणा तुलसीदासजी ने की थी। निर्गुण मत में निम्नजातीय धार्मिक जनवाद का पूरा जोर था, उसका क्रान्तिकारी सन्देश था। कृष्णभक्ति में वह बिल्कुल कम हो गया किन्तु फिर भी निम्नजातीय प्रभाव अभी भी पर्याप्त था। तुलसीदास ने भी निम्नजातीय भक्ति स्वीकार की, किन्तु उसको अपना सामाजीक दायरा बतला दिया।'' - मुक्तिबोध ( पूरा लेख यहां देखें )



साहित्‍य को हमें तीन दृष्टियों से देखना चाहिए। एक तो यह कि वह किन सामाजिक और मनोवैज्ञानिक शक्तियों से उत्पन्न है, अर्थात् वह किन शक्तियों के कार्यों का परिणाम है, किन सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रियाओं का अंग है? दूसरे यह कि उसका अंत:स्वरूप क्या है, किन प्रेरणाओं और भावनाओं ने उसके आंतरिक तत्व रूपायित किए हैं? तीसरे, उसके प्रभाव क्या हैं, किन सामाजिक शक्तियों ने उनका उपयोग या दुरूपयोग किया है और क्यों? साधारण जन के किन मानसिक तत्वों को उसने विकसित या नष्ट किया है? -मुक्तिबोध ( पूरा लेख यहां देखें )



2 comments:

Asha Joglekar said...

धन्यवाद ।

roshan premyogi said...

achcha prayas hai. update karate rahiye blog ko.
-roshan premyogi