आर चेतन क्रांति ( छाया - कुमार मुकुल से साभार )
तुष्ट- सम्पुष्ट छपास का शौकिया शोक गीत - शीर्षक कविता का एक अंश
.. छपना जरूरी था
क्योंकि छपने के बाद चिंता कम हो जाती थी
क्योंकि छपने के बाद कविता कंक्रीट का खम्भा हो जाती थी
जिसे जमीन में गाडकर एक छत उस पर टांग सकते थे
क्योंकि छपना दरअसल समाज में शामिल हो जाना था
और समाज कुछ यूं था कि वह शक्ति के , सत्ता के और संप्रभुता के अनेक चेहरों का संग्रहालय तो था ही
इसके अलावा उसने भय की रसायन तैयार किया था
इसमें आत्मा के बाकी हर चेहरे पिघलाकर घोल दिया गया था
वहां आधे डरने वाले थे और आधे डरानेवाले
- इस तरह वहां रहने के लिए रिहायश और आने- जाने के लिए एक सीधा रास्ता बनता था
छपना डरने वालों से डराने वालों में चले जाना था ...
क्योंकि छपने के बाद कविता कंक्रीट का खम्भा हो जाती थी
जिसे जमीन में गाडकर एक छत उस पर टांग सकते थे
क्योंकि छपना दरअसल समाज में शामिल हो जाना था
और समाज कुछ यूं था कि वह शक्ति के , सत्ता के और संप्रभुता के अनेक चेहरों का संग्रहालय तो था ही
इसके अलावा उसने भय की रसायन तैयार किया था
इसमें आत्मा के बाकी हर चेहरे पिघलाकर घोल दिया गया था
वहां आधे डरने वाले थे और आधे डरानेवाले
- इस तरह वहां रहने के लिए रिहायश और आने- जाने के लिए एक सीधा रास्ता बनता था
छपना डरने वालों से डराने वालों में चले जाना था ...
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